उम्मीद

संवलाई शाम
मटमैला सूरज
अलसाई धूप
उदास आँगन
फूलों के रंग भी फीके फीके
कल्पनाएँ
मानो जंगल हो गई हैं
मन का हिरण
दौड़ता हांफता
लगा है थकने
धुंधली पड़ने लगी हैं
मेरी अल्पनायें
बावजूद इसके ...
मैंने सहेज रखी हैं
मुट्ठी भर किरणे
निर्मल
सलोनी सुबह के लिए ...

Comments

  1. Bahut achhi KAVITA hai, badhai!!! Ummeed ki sunhari kiran ke liye bhi sadhuwaad !!!!

    ReplyDelete
  2. कहीं कुछ अधूरा सा है, कुछ छूटा सा है। पर पूरा होने की आशा अच्‍छी लगती है।

    ReplyDelete
  3. मैंने सहेज रखी हैं
    मुट्ठी भर किरणे
    निर्मल
    सलोनी सुबह के लिए ...

    bahut sundar.....badhai

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

स्लम डॉग्स