Popular posts from this blog
हसरतें चलो, एक बार फिर तराश दो मेरे विश्वास के वट वृक्ष को। बोनजाई बना डालो मेरे प्रेम को.. बेपरवाह शब्दों की कलाकारी से! पर मत भूलो ! आईना आपनी ज़ात के मुताबिक़ एक बार फिर दिखा ही देगा असली चेहरा...! हमारे तुम्हारे दरमियान लफ़्ज़ों से होंगे फैसले। तब मालूम चलेगी अपनी अपनी औक़ात... कितने भरे हैं हम और कितने खाली हैं हमारे अहसास...! जवान अरमानो के बीच कितनी बूढ़ी हो चुकी हैं हमारी शिकायतें। आज, इस गुमान से ही कांप रही है मेरी रूह। कितनी उकताहट और बेचैनी भरी है दिलो-दिमाग में। कितने लाचार हैं हम... टटोलती हूं, मन के किसी कोने को, जो दर्ज कर रहा है हसरतें अगले पलों में जीने के लिए और मैं वो ही हसरतें सुनाने के लिए गढ़ रही हूं नए डायलॉग.. जो दिल के दरवाज़े पर बज रहे हैं ज़ाइलोफोन की मीठी तरंगों की तरह...। हर घड़ी, हर पल...। ************** रूबी मोहन्ती
Comments
Post a Comment